शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

वजन घटाने के लिए जॉगिंग कारगर नहीं......


लंबे समय से आपको यह पता है कि जॉगिंग करके आप फिट रहेंगे। इससे आपकी फिटनेस का लेवल बढ़िया रहेगा। यह मेटाबॉलिजम बढ़ाकर मोटापा घटाता है। खास बात यह है कि इसके लिए सिर्फ बढ़िया जूते होने चाहिए, जगह कोई भी चुनी जा सकती है। लेकिन ब्रिटेन के एक पर्सनल ट्रेनर और एक्सपर्ट ग्रेग ब्रुक्स का दावा है कि दौड़ना हर समय कारगर नहीं होता। इससे जॉइंट स्ट्रेन और यहां तक कि हार्ट अटैक भी मुमकिन है।
ग्रेग ब्रुक्स के कददानों में कई सिलेब्रिटी और ऊंचे पदों पर बैठे लोग हैं। ग्रेग का कहना है कि कई लोग वजन घटाने के लिए दौड़ना शुरू कर देते हैं। यह हमेशा कारगर नहीं होता। इसकी वजह है कि छोटी मांसपेशियां ताकतवर बने रहने के लिए एनर्जी का इस्तेमाल कम करती हैं। हार्ट भी एक मांसपेशी है। आप हार्ट से जबरन लंबे समय तक काम लेते रहेंगे तो यह क्षमता बढ़ाने के लिए कम एनर्जी का इस्तेमाल करना चाहेगा और सिकुड़ेगा। अगर आप चाहते हैं कि हार्ट साइज बढ़ाए तो हार्ट को उस लायक मजबूत बनाना होगा। उसकी क्षमता का इम्तहान लेना ठीक नहीं।
रनिंग में एक ही मूवमेंट बार-बार होने से इंजरी मुमकिन है। इस शिकायत से तो कई लोग वाकिफ होंगे। उनके घुटने और टखने जॉगिंग के पैमाने पर फेल हो गए होंगे। 'डेली मेल' के मुताबिक ग्रेग ने कहा है कि जब आप दौड़ते हैं तो बॉडी वेट का ढाई गुना वजन जॉइंट्स के जरिये ट्रांसमिट होता है। दौड़ने के दौरान यह फोर्स बार-बार लगता है। आखिर में कमजोर जॉइंट जवाब दे देता है। आम तौर पर पहले घुटने और टखने जवाब दे देते हैं। एक चोट के कायम होते हुए भी दौड़ते रहने पर दूसरा कमजोर जॉइंट निशाने पर आ जाता है।
ग्रेग कहते हैं कि अगर आप मसल को गंभीर नुकसान पहुंचाना चाहें और मेटाबॉलिक रेट घटाना चाहें तो दौड़ते रहें। लंबी दूरी की दौड़ से आपके अंदर जमा एनर्जी का भंडार भी खत्म होता जाता है। ऐसे में एनर्जी के लिए मसल के टिश्यू टूटने लगते हैं। छरहरा बनने की बात तो दूर है, दौड़ने से फैट गेन हो सकता है। शरीर में एनर्जी का सबसे पसंदीदा सोर्स फैट है। आप जितना दौड़ेंगे, शरीर अपने आपको अगली दौड़ के लिए उतना ही तैयार कर लेगा। बॉडी एक हैरतअंगेज मशीन है और वह हर हालात मंजूर कर लेती है। आप दौड़ में जितने बेहतर होते जाएंगे, उतनी कम एनर्जी का इस्तेमाल करेंगे। उतनी कम कैलरी बर्न होगी। ऐसे में आप पहले के मुकाबले अगर ज्यादा वजन के हो सकते हैं...इसलिए....जॉगिंग कीजिए पर सोच समझ कर...
साभार-एनबीटी

रविवार, जुलाई 25, 2010

थोड़ी - थोड़ी पिया करो


शराब का सेवन करने वाले बुजुर्गो के लिए शराब का सेवन फायदेमंद साबित हो सकता है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि रात का भोजन करने के बाद एक या दो पैग शराब का सेवन करने वाले बुजुर्गो में दिल की बीमारी, मधुमेह तथा मानसिक विकृति के खतरों को कम कर सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि एक या दो पैग लेने वाले बुजुर्गो की मृत्यु दर में 30 फीसदी की कमी हो सकती है। रात का भोजन करने के बाद शराब पीने का आनंद लेना अच्छा साबित हो सकता है क्योंकि शराब से भोजन जल्दी पच सकता है। ऐसे में इसका सेवन करने वाले अपने आपको काफी हल्का महसूस करेंगे।
स्थानीय समाचार पत्र 'डेली मेल' के मुताबिक वेस्टर्न आस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस प्रभाव को जानने के लिए 65 वर्ष से अधिक लगभग 25,000 लोगों पर यह प्रयोग किया।
अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान फोरम ऑन एल्कोहल रिसर्च से संबद्ध हेलेना कानीबियर ने कहा, ''अधिकांश बुजुर्गो की मौत धमनियों के बंद हो जाने से होती है। धमनियों के बदं हो जाने से रक्त का प्रवाह कम हो जाता है। इस वजह से मानसिक विकृति, दिल की बीमारियां और कई तरह के दौरे पड़ने का खतरा बना रहता है।''
हेलेना कहती हैं, ''शराब रक्त को पतला बना देता है और धमनियों के सूजन को कम कर उन्हें खुला रखने में सहायता करता है। यह इंसुलिन बढ़ाने में मदद भी करता है जिससे मधुमेह होने का खतरा कम हो जाता है।''

शनिवार, जुलाई 24, 2010

लाखों की जान ले लेगा एस्बेस्टस


21 जुलाई को वर्ल्ड एस्बेस्टस डे था......विश्व एस्बेस्टस दिवस के मौक़े पर खोजी पत्रकारों की संस्था 'इंटरनेशनल कन्सोर्टियम ऑफ़ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स' और बीबीसी ने संयुक्त रुप से की गई छानबीन में पाया है एस्बेस्टस से कैंसर होने की आशंका के बावजूद दुनिया भर में इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन हो रहा है.हालांकि एस्बेस्टस कनाडा सहित दुनिया के क़रीब 50 देशों में प्रतिबंधित है लेकिन इन देशों की कंपनियाँ अभी भी चीन, भारत और मैक्सिको जैसे विकासशील देशों को एस्बेस्टस का निर्यात कर रहे हैं.इन कंपनियों का कहना है कि वे जो एस्बेस्टस निर्यात कर रहे हैं वह 'व्हाइट एस्बेस्टस' है और अपेक्षाकृत सुरक्षित है.
'व्हाइट एस्बेस्टस' का उपयोग निर्माण और अन्य उद्योगों में होता है.
छानबीन से यह भी पता चला है कि अभी भी इस कैंसरकारी तत्व के प्रचार के लिए लाखों डॉलर ख़र्च किए जाते हैं.
विवाद
इस बात को लेकर एक वैज्ञानिक बहस चल रही है कि क्या एस्बेस्टस का उपयोग अभी भी किया जा सकता है.
विकासशील देशों में एस्बेस्टस अभी भी अग्निरोधक छतों के निर्माण, पानी के पाइप और भवन निर्माण में कई जगह एक सस्ते और लोकप्रिय सामग्री के रुप में उपयोग में लाया जाता है.
इस खनिज बचाव करने वालों का कहना है कि इस समय सिर्फ़ व्हाइट एस्बेस्टस का उपयोग किया जाता है. उनका कहना है कि अगर व्हाइट एस्बेस्टस का सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाए और यह बहुत अधिक मात्रा में शरीर के भीतर ना जाए तो यह हानिकारक नहीं होता.
वैज्ञानिक शोधों का हवाला देकर वे कहते हैं कि व्हाइट एस्बेस्टस वैसा हानिकारक नहीं होता जैसे कि ब्लू एस्बेस्टस और ब्राउन एस्बेस्टस होते हैं.
सांस की बीमारियों और कैंसर के सबूत मिलने के बाद ब्लू एस्बेस्टस और ब्राउन एस्बेस्टस को दुनिया भर में प्रतिबंधित कर दिया गया है.
लेकिन बहुत से कार्यकर्ता और वैज्ञानिक विश्व स्वास्थ्य संगठन का हवाला देकर एस्बेस्टस का विरोध कर रहे हैं.
उनका कहना है व्हाइट एस्बेस्टस में भी कैंसरकारी तत्व हैं और इससे फेफड़े के कैंसर के अलावा कई तरह का कैंसर हो सकता है.
उल्लेखनीय है कि व्हाइट एस्बेस्टस पर यूरोपीय संघ ने प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन भारत, चीन और रूस में अभी भी इसका प्रयोग होता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक शीर्ष वैज्ञानिक का कहना है कि अब व्हाइट एस्बेस्टस के खनन और उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
बीबीसी हिंदी से साभार

डॉक्टरों का विकल्प बनेगा ‘रोबोट’


सर्जरी के दौरान डॉक्टरों की मदद करने वाले रोबॉट तो अब आम हो चुके हैं लेकिन अब दिल थाम लीजिए वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रोबोट विकसित किया है जो खुद डॉक्टरों का रोल निभाएगा... मतलब ऑपरेशन थियेटर से डॉक्टर साहब हो जायेंगे बाहर ......अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के बायो-इंजीनियर्स ने एक स्टडी के जरिए यह साबित कर दिया कि अब रोबोट बिना इंसानी मदद के हमारे शरीर के भीतर मौजूद ट्यूमरों को खोज सकेंगे। यही नहीं वह इन ट्यूमरों से अलग-अलग नमूने यानी सैमेपल्स भी ले सकेंगे। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर इस तकनीक को और विकसित किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब रोबोट कई और तरह की सर्जरी कर पाने में सफलहो जायेंगे..
रिसर्च टीम के सदस्य और ड्यूक के साइंटिस्ट काइचेंग लियांग का कहना है कि हमने साल के शुरू में दिखाया था कि ऑर्टिफिशल इंटेलिजेंस के सहारे एक रोबोट नकली ब्रेस्ट टिश्यू में मौजूद गांठ को खोज लेता है। ऐसा उसने बार-बार कर दिखाया। ताजा एक्सपेरिमेंट में हमने दिखाया है कि रोबोट इंसानी प्रोस्टेट टिश्यू के आठ अलग-अलग सैंपल ले सकता है।
यूनिवर्सिटी के मुताबिक, दोनों प्रयोगों में टर्की पक्षी के टिश्यू का इस्तेमाल किया गया था। रिसर्च में एक रोबोटिक बांह और उससे जुड़े अल्ट्रासाउंड सिस्टम का इस्तेमाल किया गया था। अल्ट्रासाउंड सिस्टम को रोबोट की आंख की तरह उपयोग किया गया। इस रोबोट को आर्टिफिशल इंटेलिजेंस से नियंत्रित किया गया था। इस तरह के एक्सपेरिमेंट में 93 पर्सेंट की सफलता देखी गई।
इस प्रयोग की सबसे बड़ी बात थी कि इसमें पहले से मौजूद हार्डवेयर का इस्तेमाल किया गया। इस तरह इस रिसर्च को और विकसित करने के लिए नए सिरे से काम नहीं करना पड़ेगा।

मछलियां भी करती हैं बातें


शांत तरीके से पानी में तैरती मछलियों को देखकर लगता ही नहीं कि वे भी आपस में बातें करती होंगी। लेकिन ताजा रिसर्च कहती हैं कि कुछ मछलियाँ आवाजें करती हैं। कई बार वह सथियों को खतरे से आगाह करती हैं तो कई बार मौज मस्ती भी।
न्यूजीलैंड के एक शोधकर्ता के मुताबिक मछलियाँ चिड़ियों की तरह चहचहा और भिनभिना सकती हैं। कई प्रजातियाँ तो सूअर जैसी आवाज भी निकाल सकती हैं। सभी मछलियाँ सुन सकती हैं, लेकिन सभी मछलियाँ आवाजें नहीं कर सकतीं। जो मछलियाँ आवाजें कर सकती हैं, वे इस क्षमता को एक दूसरे को सावधान करने के लिए या दूसरी मछलियों को भगाने के लिए इस्तेमाल करती हैं। कई इस क्षमता को अपना साथी चुनते वक्त भी इस्तेमाल करती हैं।
शोधकर्ता शाहरिमान गजाली ने यह भी पाया कि ये जीव अपने पंखों को फड़फड़ा कर ऐसा करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि कम आँके जाने वाली मछलियों में भी हमारी सोच से कहीं ज्यादा गुण हैं। यानी सागरों की दुनिया इतनी शांत नहीं है, जितनी लगती है।
लेकिन अगर कोई यह सोच रहा हो कि उसके एक्वेरियम में रखी गोल्डफिश भी कुछ कहेगी, तो यह जरा मुश्किल है। गजाली कहते हैं, 'गोल्डफिश की सुनने की क्षमता बहुत अच्छी है। लेकिन सुनने का मतलब यह नहीं है कि वह बोल भी सकती है। कुछ भी हो, वे किसी तरह की आवाज नहीं करती हैं।'गजाली ने अपने शोध के इन निष्कर्षों को न्यूजीलैंड की मैरिन साइंस सोसाइटी में पेश किया।

रविवार, जुलाई 18, 2010

पतला होना चाहते हैं क्या आप ?


पतला होने की तमन्ना रखने वाले मोटे लोगों के लिए यह अच्छी खबर है। खासकर वे जो वजन घटाने के लिए ज्यादा मेहनत करने के बजाय कोई क्विकफिक्स तरीका ढूंढते हैं। साइंटिस्टों का दावा है कि उन्होंने एक ऐसी फोर-इन-वन गोली तैयार कर ली है, जो न सिर्फ वजन घटाएगी, बल्कि मोटे लोगों का ब्लड प्रेशर कंट्रोल करेगी, कॉलेस्ट्रॉल का लेवल सही रखेगी और डायबीटीज से भी उनकी रक्षा करेगी। बाजार में आने में इसे तीन साल लगेंगे। वैज्ञानिक इसे डायट ड्रग कह रहे हैं, जिसका नाम है लाइरग्लूटाइड। डेली मेल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, इस दवाई में फील गुड फैक्टर है। इसका स्ट्रक्चर ठीक गट हॉरमोन की तरह है, जो भूख को कंट्रोल करता है। यह दवाई सीधे ब्रेन को यह मेसेज पहुंचाती है कि पेट भरा हुआ है। बेशक आपने अपनी भूख से 20 फीसदी खाना कम खाया हो, लेकिन आपको पेट पूरी तरह से भरा हुआ महसूस होने लगेगा।
वैज्ञानिकों ने इस दवा को 550 मोटे पुरुषों और महिलाओं पर टेस्ट किया। इसके तहत कुछ को रोजाना एक लाइराग्लूटाइड दी जा रही थी, जबकि कुछ को इसकी जैसी दिखने वाली बेअसर डमी दवा। नतीजा देखा गया कि लाइराग्लूटाइड लेने वालों ने छह महीने में करीब डेढ़ किलो वजन घटा लिया, जो डमी दवा खाने वालों से दोगुना था। जब उन्हें लगातार डेढ़ साल तक लाइराग्लूटाइड दी गई तो उनका वजन वहीं पर स्थिर हो गया, जबकि डमी दवा खाने वालों का वजन तेजी से बढ़ता गया। यह दवा इंसुलिन की तरह इंजेक्शन से ली जाती है। टेस्ट में पाया गया कि इसे रेगुलर तौर पर लेने के बाद बीपी कम करने की दवा अलग से ले रहे लोगों की वह दवा छूट गई। लाइरग्लूटाइड से उनके ब्लड प्रेशर का लेवल काफी गिर गया। ब्लड फैट और कॉलेस्ट्रॉल लेवल भी काफी कम होता देखा गया। नतीजों में यह भी पाया गया कि शरीर के पास शुगर से लड़ने की ताकत इस कदर बदल गई कि जिन्हें डायबीटीज का खतरा था, वह दूर हो गया। साइंटिस्टों के मुताबिक, कई लोग जो इंसुलिन लेते थे, उन्हें इस दवा के सेवन के बाद उसकी जरूरत नहीं पड़ी। ग्लासगो यूनिवसिर्टी के प्रोफेसर माइक लीन ने बताया कि इस दवा को लेने का मतलब यह कतई न लगाया जाए कि मोटे लोगों को डायबीटीज या हार्ट की बीमारी कभी होगी ही नहीं। लेकिन इतना जरूर है कि आपने घड़ी को उल्टा घुमा दिया है। फिलहाल यह पता नहीं लगाया गया है कि इस दवा को छोड़ने के बाद क्या लोगों का वजन बढ़ेगा या नहीं। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हम अपने खाने-पीने की आदतों को सुधार लें तो फिर इस दवा की जरूरत उन्हें नहीं पड़ेगी।

शनिवार, जुलाई 17, 2010

बढ़ रहा है मोटापे का रोग


करीब तीन करोड़ इंडियन मोटापे से परेशान हैं। इससे भी डराने वाला डेटा यह है कि स्कूल जाने वाले 20 पर्सेंट बच्चे ओवरवेट हैं। यह नतीजा सामने लाया है नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस)से। सर्वे का कहना है कि मोटापा दुनिया भर में महामारी के रूप में बढ़ता जा रहा है। खासकर विकसित देशों में इससे लोग परेशान हैं। भारत में को यह बीमारी बड़ी तेजी से अपनी चपेट में ले रही है। सर्वे के नतीजों के मुताबिक मोटापे से टाइप टू डायबीटीज का खतरा तो बढ़ता ही है, साथ ही हाइपरटेंशन, ऑस्टोआर्थराइटिस जैसी बीमारियां भी सिर उठाने लगती हैं।
महिलाओं में मोटापा ज्यादा भयानक रूप ले लेताहै। इससे न सिर्फ उन्हें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा रहता है, बल्कि यूट्रस का कैंसर, बांझपन जैसी समस्याएं सामने आती हैं।
मोटापे के साथ-साथ ऑर्थराटिस भी देश के लोगों को तेजी से अपनी जकड़ में ले रहा है। हालत इतनी गंभीर है कि 2013 में देश के करीब 65 फीसदी लोगों को ऑर्थराइटिस से पीडि़त होंगे। एक सर्वे के अनुसार फिलहाल देश में 65 साल से ज्यादा की उम्र के 70 फीसदी लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं। 2013 तक यह सबसे बड़ी महामारी बन जाएगा।

हर फ्लू के लिए बन रही है एक वैक्सीन


तरह-तरह के फ्लू के अटैक से बचने के लिए अब हर बार आपको नई वैक्सीन लगवाने की जरूरत नहीं क्योंकि अब ऐसी वैक्सीन बनाई जा रही है जो
हर तरह के फ्लू को रोकने में कारगर होगी। इस वैक्सीन को बनाने में जुटी वैज्ञानिकों की इंटरनैशनल टीम की कोशिश है कि इससे आम सर्दी जुकाम के फ्लू से लेकर बर्ड फ्लू जैसे नए फ्लू की भी रोकथाम हो सके। अच्छी बात यह है कि इस वैक्सीन के लिए बहुत वक्त इंतजार नहीं करना पड़ेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगले कुछ वर्षों में ही यह बाजार में मौजूद हो जाएगी।
वैज्ञानिकों का मानना है कि उन्होंने 'सबके लिए एक' इस वैक्सीन को डिजाइन करने की गुत्थी सुलझा ली है। इस वैक्सीन के शुरुआती ट्रायल शुरू भी किए जा चुके हैं और 2013 तक इसे इनसानों पर टेस्ट किया जा सकता है। इनसानी ट्रायल अभी भले ही शुरुआती चरण में हो पर वैज्ञानिकों ने चूहों और बंदरों पर सफल ट्रायल किए हैं। इनके इम्यून सिस्टम को इन्फ्लूएंजा के डीएनए से लैस किया गया था।
बंदरों में मौसमी फ्लू के रेगुलर वैक्सीन का बूस्टर भी डाला गया। इससे बंदरों की इम्यूनिटी में और इजाफा देखा गया। वैक्सीन का असर हर साल बढ़ता ही गया जब तक कि वैक्सीन लेने वाले में फ्लू को लेकर इम्यूनिटी नहीं आ गई। प्राइमिंग या बेस वैक्सीन 1999 के एक वायरस से आई थी पर इससे जो एंटीबॉडीज बनीं उन्होंने वायरस की कई किस्मों को बेकाम कर दिया।
यूएस नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिजीज से जुड़े और इस स्टडी के लीडर डॉ. गैरी नेबल के मुताबिक, हम इन नतीजों से काफी प्रभावित हैं। प्राइम बूस्ट अप्रोच से एनफ्लूएंजा के टीकाकरण में नई आशा जगी है। यह हेपटाइटिस की तर्ज पर होगा जिसमें हम जीवन के शुरुआती हिस्से में वैक्सीन लेने के बाद वयस्क होने पर भी अडिशनल डोज लेकर इम्यूनिटी बढ़ाते हैं। हमें उम्मीद है कि अगले 3 से 5 वर्षों में हम सभी फ्लू से सुरक्षा करने वाली वैक्सीन के असर को मापने के लिए ट्रायल शुरू कर देंगे।
वैज्ञानिकों ने यह भी देखा कि प्राइम बूस्ट वैक्सीन ने किस तरह चूहे को खतरनाक फ्लू वायरस से बचाया। बूस्ट मिलने के तीन हफ्ते बाद 20 चूहों को 1934 के फ्यू वायरस के बीच छोड़ा गया। इनमें से 80 पर्सेंट बच गए। जब चूहों को सिर्फ प्राइम या बूस्ट ही दिया गया या नकली वैक्सीन ही दी गई तो सभी चूहों की मौत हो गई। एक्सर्पट्स ने इस रिसर्च का स्वागत किया है। ब्रिटेन के लीडिंग फ्लू एक्सपर्ट और वायरॉलजिस्ट प्रोफेसर जॉन ऑक्सफर्ड के मुताबिक, यह एक नई और मजेदार कोशिश है। लगता है इन रिसर्चरों को कोई यूनिवर्सल या जनरल एंटी बॉडी का पता लग गया है जो कई तरह के वायरस पर हमला करती है। इस वैक्सीन का हम सभी को इंतजार है पर अगला कदम काफी अहम रहने वाला है।

गुरुवार, जुलाई 15, 2010

सौ साल जी सकेंगे आप

क्या आप जानना चाहते हैं कि आपकी उम्र 100 साल की होगी? हाथों की रेखाओं को छोड़िए और तैयार हो जाइए एक छोटे से जेनेटिक टेस्ट के लिए जो आपको इसका जवाब देगा।
बोस्टन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने दावा किया है कि उन्होंने दीर्घायु होने के जेनेटिक लक्षण खोज निकाले हैं, जिससे पुख्ता तौर पर यह पता लगाया जा सकता है कि कौन जीवन में 100 वसंत देखेगा।
साइंटिस्ट्स ने बेहद उम्रदराज लोगों में 154 समान डीएनए पाए जिसके बारे में उनका कहना था कि ये व्यक्ति के दीर्घायु होने के बारे में 77 पर्सेंट तक ठीक ठाक सूचना दे सकते हैं।
टेलिग्राफ खी खबर में बताया गया कि साइंटिस्ट्स को यह भी यकीन है कि ये सूचनाएं युवा लोगों में जीवन के लिए खतरनाक बीमारियों के इलाज में मदद करेंगी।
रिसर्च कर रही टीम की लीडर प्रफेसर पाओला सेबस्टीआनी ने बताया कि शुरुआती आंकड़ों से मालूम होता है कि लंबे जीवन की वजह जीन होते हैं। ये जीन शरीर में बीमारी से होने वाले नुकसान को कम करते हैं और उम्र बढ़ाने में मददगार होते हैं।
नभाटा से साभार

बुधवार, जुलाई 14, 2010

नींद पूरी नहीं पर बढ़ सकता है वजन


वर्ल्डकप फुटबॉल के मैच देखते हुए अगर आपने कई रातें जागकर गुजारी हैं या फिर अपने पसंदीदा टीवी कार्यक्रम देखते हुए आप देर रात तक जगाते रहते हैं तो सावधान हो जाइए, देर तक जागना आपको कितना महंगा पड़ सकता है और नींद की कमी से आंखों के नीचे काले घेरों के साथ ही आपकी छरहरी काया मोटी और बेडौल हो सकती है।
अमेरिका के केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी में हाल ही में 68,000 महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन के नतीजों में पाया गया कि जो महिलाएं पांच घंटे से कम नींद लेती हैं उनका वजन सामान्य से कहीं ज्यादा होता है। सात घंटे की नींद लेने वाली महिलाओं की तुलना में पांच घंटे की नींद लेने वाली महिलाओं का वजन बहुत ज्यादा होता है।
डॉ. हिमांशु गर्ग बताते हैं कि नींद का असर उन हार्मोन पर पड़ता है जो भूख लगने और संतुष्टि से जुड़े होते हैं। ये हार्मोन क्रमश: लेप्टिन और ग्रेलिन हैं।
वह कहते हैं कि सामान्य अवस्था में वसा कोशिकाएं लेप्टिन हार्मोन का उत्पादन करती हैं जो रक्त वाहिनियों में जाता है। यह हार्मोन पर्याप्त वसा संग्रह का संकेत होता है और प्राकृतिक तरीके से भूख को दबाता है।
डॉ. गर्ग कहते हैं कि ग्रेलिन हार्मोन का उत्पादन बड़ी आंत की कोशिकाएं करती हैं। यह हार्मोन मस्तिष्क को यह संकेत देता है कि अब कुछ खाना चाहिए।
नींद पूरी न होने पर लेप्टिन का स्तर कम हो जाता है और भूख लगने लगती है। इसी स्थिति में भूख लगने के लिए जिम्मेदार ग्रेलिन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है और मस्तिष्क को भूख लगने का संकेत मिल जाता है। व्यक्ति को कुछ खाने की इच्छा होने लगती है। इसका नतीजा मोटापे के रूप में सामने आता है।
नैचरोपैथ डॉ. पवन साहू कहते हैं हालात ऐसे हो गए हैं कि बड़े तो बड़े, बच्चों को भी कई बार देर रात तक जागना पड़ता है। उन पर पढ़ाई का दबाव होता है। लेकिन इसके गहरे दुष्परिणाम भी होते हैं। अगले दिन भूख का अहसास खत्म नहीं होता। लगातार खाने के कारण मोटापा बढ़ता है। फिर मोटापे से छुटकारा पाने के लिए डाइटिंग और कई उपाय किए जाते हैं लेकिन अपर्याप्त नींद की ओर अक्सर लोगों का ध्यान नहीं जाता। डॉ. साहू कहते हैं की समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है। लेकिन कुछ ऐसे स्लीप डिस्ऑर्डर हैं जिनका सीधा संबंध मोटापे से होता है। इनमें से एक है पिकवीकियन सिन्ड्रोम जिससे अक्सर मोटे लोग प्रभावित होते हैं। डॉ. गर्ग कहते हैं लोग नहीं जानते कि नींद कम होने पर शरीर अधिक कैलोरी खत्म नहीं कर पाता। इसकी वजह से अतिरिक्त कैलोरी वसा बन कर जमने लगती है और वजन घटाने की सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है।
(नभाटा से साभार)

सोमवार, जुलाई 12, 2010

घरेलू नुस्खों से दूर करें कई तरह के दर्द


जिस तरह का जीवन हम जी रहे हैं, उसमें सिरदर्द होना एक आम बात है। लेकिन यह दर्द हमारी दिनचर्या में शामिल हो जाए तो हमारे लिए बहुत कष्टदायी हो जाता है। दर्द से छुटकारा पाने के लिए हम पेन किलर घरेलू उपाय अपनाकर इसे दूर कर सकते हैं। इन घरेलू उपायों के कोई साईड इफेक्ट भी नहीं होते।
1. अदरक: अदरक एक दर्द निवारक दवा के रूप में भी काम करती है। यदि सिरदर्द हो रहा हो तो सूखी अदरक को पानी के साथ पीसकर उसका पेस्ट बना लें और इसे अपने माथे पर लगाएं। इसे लगाने पर हल्की जलन जरूर होगी लेकीन यह सिरदर्द दूर करने में मददगार होती है।
2. सोडा: पेट में दर्द होने पर कप पानी में एक चुटकी खाने वाला सोडा डालकर पीने से पेट दर्द में राहत मिलती है। सि्त्रयो के मासिक धर्म के समय पेट के नीचे होने वाले दर्द को दूर करने मे खाने वाला सोडा पानी में मिलाकर पीने से दर्द दूर होता है। एसिडिटी होने पर एक चुटकी सोडा, आधा चम्मच भुना और पिसा हुआ जीरा, 8 बूंदे नींबू का रस और स्वादानुसार नमक पानी में मिलाकर पीने से एसिडिटी में राहत मिलती है।
3. अजवायन: सिरदर्द होने पर एक चम्मच अजवायन को भूनकर साफ सूती कपडे में बांधकर नाक के पास लगाकर गहरी सांस लेने से सिरदर्द में राहत मिलती है। ये प्रक्रिया तब तक दोहराएं जब तक आपका सिरदर्द ठीक नहीं हो जाता। पेट दर्द को दूर करने में भी अजवायन सहायक होती है। पेट दर्द होने पर आधा चम्मच अजवायन को पानी के साथ फांखने से पेट दर्द में राहत मिलती है।
4. बर्फ : सिरदर्द में बर्फ की सिंकाई करना बहुत फायदेमंद होता है। इसके अलावा स्पॉन्डिलाइटिस में भी बर्फ की सिंकाई लाभदायक होती है। गर्दन में दर्द होने पर भी बर्फ की सिंकाई लाभदायक होती है।
5. हल्दी: हल्दी कीटाणुनाशक होती है। इसमें एंटीसेप्टिक, एंटीबायोटिक और दर्द निवारक तत्व पाए गए हैं। ये तत्व चोट के दर्द और सूजन को कम करने में सहायक होते हैं। घाव पर हल्दी का लेप लगाने से वह ठीक हो जाता है। चोट लगने पर दूध में हल्दी डालकर पीने से दर्द में राहत मिलती है। एक चम्मच हल्दी में आधा चम्मच काला गर्म पानी के साथ फांखने से पेट दर्द व गैस में राहत मिलती है।
6. तुलसी के पत्ते: तुलसी में बहुत सारे औषधीय तत्व पाए जाते हैं। तुलसी की पत्तियों को पीसकर चंदन पाउडर में मिलाकर पेस्ट बना लें। दर्द होने पर प्रभावित जगह पर उस लेप को लगाने से दर्द में राहत मिलेगी। एक चम्मच तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर हल्का गुनगुना करके खाने से गले की खराश और दर्द दूर हो जाता है। खांसी में भी तुलसी का रस काफी फायदेमंद होता है।
7. मेथी: एक चम्मच मेथी दाना में चुटकी भर पिसी हुई हींग मिलाकर पानी के साथ फांखने से पेटदर्द में आराम मिलता है। मेथी डायबिटीज में भी लाभदायक होती है। मेथी के लड्डू खाने से जोडों के दर्द में लाभ मिलता है।
8. हींग: हींग दर्द निवारक और पित्तवर्द्धक होती है। छाती और पेटदर्द में हींग का सेवन लाभकारी होता है। छोटे बच्चों के पेट में दर्द होने पर हींग को पानी में घोलकर पकाने और उसे बच्चो की नाभि के चारो ओर उसका लेप करने से दर्द में राहत मिलती है।
9. सेब: सुबह खाली पेट प्रतिदिन एक सेब खाने से सिरदर्द की समस्या से छुटकारा मिलता है। चिकित्सकों का मानना है कि सेब का नियमित सेवन करने से रोग नहीं घेरते।
10. करेला: करेले का रस पीने से पित्त में लाभ होता है। जोडों के दर्द में करेले का रस लगाने से काफी राहत मिलती है।

स्वाइन फ्लू के लिए होम्योपैथी दवा


स्वाइन फ्लू का स्वदेशी टीका जारी किए जाने के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इस बीमारी के खिलाफ एहतियाती उपाय के रूप में एक होम्योपैथी दवा का सुझाव दिया है।
सेंट्रल कौंसिल फोर रिसर्च इन होम्योपैथी (सीसीआरएच) की आठ जुलाई 2010 को हुई बैठक में विशेषज्ञों के एक समूह ने ‘आर्सेनिकम एलबम’ को फ्लू जैसी बीमारी में एहतियात के तौर पर लेने की सिफारिश की है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने यह जानकारी दी। विशेषज्ञ समूह ने सिफारिश की है कि स्वाइन फ्लू के लक्षण होने पर वयस्कों को तीन दिन नियमित रूप से खाली पेट आर्सेनियम एलबम 30 की चार तथा बच्चों को दो गोलियां खानी चाहिए। यदि क्षेत्र में फ्लू जैसी स्थितियां बनी रहती हैं तो इसी खुराक को एक माह के बाद इसी क्रम से लेना चाहिए। विशेषज्ञ समूह ने आगे सुझाव दिया है कि इस बीमारी से बचाव के लिए जनता को डाक्टरों द्वारा सुझाए गए साफ-सफाई के सामान्य नियमों का पालन भी साथ-साथ जरूर करना चाहिए।

अब डबल डेकर ट्रेन का हाईस्पीड ट्रायल


देश की पहली चेयरकार डबल डेकर ट्रेन ने पटरी पर उतरने के बाद पहली बाधा पार कर ली है। प्रोटोटाइप का सामान्य गति का परीक्षण सफल रहने के बाद अब ट्रेन के हाईस्पीड ट्राइल की तैयारी शुरू हो गई है। सामान्य रेलखंड पर ट्रेन की रफ्तार 110 किलोमीटर प्रति घंटा होगी, जबकि हाईस्पीड खंड पर गति राजधानी व शताब्दी एक्सप्रेस की तरह 120 से 130 किलोमीटर प्रतिघंटा होगी। अनुसंधान अभिकल्प और मानक संगठन (आरडीएसओ) जल्द ही आगरा से बाजकोटा स्टेशन के बीच डबल डेकर की प्रोटोटाइप बोगी का हाईस्पीड ट्रायल करेगा। रेलवे बोर्ड के अधिकारी के मुताबिक, आरडीएसओ ने मुरादाबाद-बरेली रेलखंड पर मार्च से जून तक डबल डेकर के प्रोटोटाइप का परीक्षण किया था। इस दौरान झटके सहने के लिए एयर स्पि्रंग भरे एक्सल की जांच की गई। परीक्षण में केवल 47 टन भार वाला प्रोटोटाइप 110 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से दौड़ने में उपयुक्त पाया गया। इस रेलखंड पर प्रोटोटाइप का परीक्षण सफल होने के बाद आरडीएसओ अब ट्रेन की गति और बढ़ाने की संभावनाएं तलाश रहा है। गति बढ़ने से कई रेलखंड पर यात्रियों का एक घंटा तक का समय बचाया जा सकेगा। इसकी कैशवर्दी डिजाइन वाली बोगियां अधिकतम गति से दुर्घटनाग्रस्त होने पर भी यात्रियों को सुरक्षित रखेंगी। इसे देखते हुए आरडीएसओ प्रोटोटाइप का हाईस्पीड ट्रायल कराने जा रहा है। लखनऊ से आए प्रोटोटाइप को जल्द ही आगरा भेजा जाएगा। फाइनल ट्रायल के बाद अगस्त में इसकी रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेजी जाएगी। यदि सब कुछ ठीक रहा तो रेलवे इस वर्ष अक्टूबर माह में पहली डबल डेकर दौड़ाने की झंडी दे देगा।

(जागरण से साभार)

ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है पानी


पानी पीने के फायदों को जानते हुए भी अगर आपने अभी तक रोजाना पर्याप्त मात्रा में पानी पीने की आदत नहीं डाली है तो अब जरा पानी को लेकर सीरियस हो जाइए। एक स्टडी में पता लगा है कि पानी हमें ज्यादा अलर्ट रखता है। यही नहीं हमारे ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करता है।
वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के रिसर्चरों ने एक स्टडी में पाया कि पानी पीने से हमारे नर्वस सिस्टम की एक्टिविटी बढ़ जाती है जिससे हम ज्यादा अलर्ट रहते हैं। इसी कारण हमारा ब्लड प्रेशर भी बढ़ता है और एनर्जी का खर्च भी।
इन रिसर्चरों ने सबसे पहले पानी और ब्लड प्रेशर का यह रिश्ता 10 साल पहले बेरोरफ्लेक्सेज खो चुके पेशंट्स में देखा था। बेरोरफ्लेक्सेज वह सिस्टम है जो ब्लड प्रेशर को नॉर्मल रेंज में रखता है। लीड रिसर्चर प्रोफेसर डेविड रॉबर्टसन के मुताबिक, यह ऑब्जर्वेशन हमारे लिए बिल्कुल हैरानी की बात थी क्योंकि अब तक स्टूडेंट्स को यही पढ़ाया जाता था कि पानी का ब्लड प्रेशर पर कोई इफेक्ट नहीं होता।
हालांकि जिन युवाओं में बेरोरफ्लेक्सेज सलामत होता है उनमें पानी से ब्लड प्रेशर नहीं बढ़ता। पर रिसर्चरों ने यह भी पाया कि पानी सिंपैथटिक नर्वस सिस्टम एक्टिविटी को बढ़ाता है और ब्लड वेसल्स को टाइट करता है।
(नभाटा से साभार)

रविवार, जुलाई 11, 2010

चाय के पौधे से स्किन कैंसर का होगा इलाज


चाय के पौधे के तेल का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर दाग-धब्बों को हटाने और कीड़ों के काटने के इलाज में किया जाता है। अब वैज्ञानिकों का दावा है कि स्किन कैंसर के कुछ मामलों में यही तेल काफी सस्ता और असरदार इलाज साबित हो सकता है।
वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पाया है कि चाय के पौधे का तेल चूहों में पाए जाने वाले नॉन मेलानोमा स्किन कैंसर को महज एक दिन में घटा देता है और तीन दिन में इसे ठीक कर देता है। नॉन मेलानोमा स्किन कैंसर एक सामान्य प्रकार का कैंसर है जो हर साल हजारों लोगों को प्रभावित करता है। इससे बचने का सबसे बढ़िया तरीका, सूरज की किरणों से बचाव है।
डेली मेल के अनुसार रिसर्चरों का मानना है कि न्यू साउथ वेल्स में पाए जाने वाले वाले मेलाल्यूका अल्टरनिफोलिया नामक चाय के पौधे से मिलने वाला तेल शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय करने का काम करता है। रिसर्च में शामिल डॉक्टर सारा गेय ने बताया कि हमारा लक्ष्य स्किन कैंसर के प्रसार को रोकना है। रिसर्चरों के मुताबिक स्किन कैंसर के लिए कीमोथेरपी का इस्तेमाल किया जाता है जो 16 हफ्तों तक चलने वाली काफी लंबी प्रक्रिया है। इसके प्रयोग से मिचली आने और फ्लू जैसे लक्षण दिखाई पड़ सकते हैं। जबकि चाय के पौधे के तेल से कुछ ही दिनों में स्किन से जुड़ी समस्या को दूर किया जा सकता है।
नभाटा से साभार